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“”प्रिय कैसा है तेरा प्यार””

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कैसे बताऊँ मैं,
प्रिय कैसा है तेरा प्यार.,
कोई जादू है या प्रभु का उपहार,
जैसे तपती धरती पर हो बूँदों की बौछार,
सूनेपन में बजी हो पायल की झनकार,
सूखे रेगिस्तान में जैसे
आई बसंत ऋतु की बाहर,
अमावस की काली  रात,
प्रातः हुआ हो सूरज
का दीदार,
जैसे बिन पानी तड़फती मछली को,
सागर मिल गया हो,
टूटे दिल का तेरे दर्श से तन मन खिल गया हो,
तुम मिली जैसे मिल
गया सारा संसार,
कैसे बताऊँ मैं,
प्रिय कैसा है तेरा
प्यार,
कोई जादू है या प्रभु का  उपहार,,,//

नरेंद्र राठी
(कवि गाजियाबादी)