आचार्य शिव कुमार शर्मा – 30 मई 2022 को इस वर्ष तीन मुख्य पर्वों का संयोग बन रहा है। अमावस को सोमवार का दिन पड़ रहा है इसलिए यह सोमवती अमावस्या के नाम से जानी जाता है। सोमवती अमावस्या को शास्त्रों में बहुत ही पुण्यदायक बताया गया है।
सोमवार को अमावस्या का योग भगवान शिव और अपने पितरों के लिए बहुत ही लाभदायक है।
सोमवार को सौभाग्यवती महिलाएं सोमवार का व्रत रख कर के भगवान शिव पार्वती की पूजा करें। इसके साथ-साथ प्रातः काल पुण्य तीर्थ, नदी में स्नान करें अथवा घर पर ही स्नान करके पितरों के निमित्त जल अर्पित करें और किसी विद्वान या ब्राह्मण को भोजन कराएं। भगवान शिव की आराधना करें।
शिवलिंग पर जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक अथवा रुद्राभिषेक करें। इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप अवश्य करें, जो दीर्घायु कारक होता है।
वट सावित्री पूजन भी ज्येष्ठ अमावस्या को ही होता है। जिसे वट अमावस्या भी कहते हैं।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार सत्यवान की आयु की रक्षा के लिए सावित्री ने यमराज को भी हरा दिया था और यमराज सत्यवान के प्राण वापस करने को राजी ही नहीं हुए बल्कि उनकी पातिव्रात्य धर्म को देख कर उन्हें तीन वरदान भी किए थे। वह अपने सास ससुर की आंखें अच्छी हो जाएं। उनका राज्य वापस मिल जाए। तथा पति की दीर्घायु होगी। इसी कामना के साथ भारतीय नारियां अपने पति की दीर्घायु के लिए इस व्रत को करती हैं।
इस दिन अर्थात जेष्ठ अमावस्या को सूर्यपुत्र शनिदेव का भी जन्म दिवस है। कहा जाता है कि शनिदेव का प्रादुर्भाव ज्येष्ठ मास की अमावस्या को हुआ था।इसलिए भक्तजन इस दिन शनि का भी विशेष पूजन कर सकते हैं। शनि को सबसे प्रिय गरीबों, उपेक्षित, श्रमिकों को भोजन कराना उनकी सहायता करना है। इस दिन अपने अधीनस्थ कर्मचारियों, सेवकों को भोजन व वस्त्र दान करना चाहिए। इससे शनि प्रसन्न होते हैं ।
शनि चालीसा, शनि स्तोत्र आदि के द्वारा शनि देव की स्तुति करनी चाहिए।
इसी दिन विशेष बात यह है कि ज्येष्ठ अमावस्या अर्थात सोमवती अमावस्या, वट अमावस्या और शनि जयंती का पर्व स्थिर और प्रवर्धन योग में मनाया जाएगा। जो एक दुर्लभ योग है और सबसे बड़ी बात अमावस्या को चंद्रमा अपनी उच्च राशि में होंगे। यद्यपि अमावस्या को चंद्रमा सूर्य के साथ अस्त रहते हैं। फिर भी विशेष फलदायक माना गया हैं।
वृषभ राशि मे उच्च राशि का चंद्रमा स्थिर मानसिक स्थिति को प्रदर्शित करता है।
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ज्येष्ठ अमावस्या को बनेगा तीन पर्वों का महायोग : आचार्य शिव कुमार शर्मा
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