डॉक्टर बृजपाल त्यागी : 14 साल हो गये, लेकिन उनकी बैत व उनके चरण पादुका आज भी उनके राजनगर वाले घर में सुरक्षित है। मुझे यंहा तक पहुँचाना और जनता की सेवा मुझे आशीर्वाद के रूप में मिला है।
सारी धार्मिक पुस्तकें उनको ज़बानी याद थी। जब पिताजी सुबह तीन बजे पशुओं को चारा डालने उठते थे तो मुझे भी पढ़ने के लिए उठा देते थे। अधिक समय पढ़ने पर कभी नाराज़ भी होते थे। मेरे हाथ में अगर किताब होती थी तो मुझे कभी कोई कार्य नहीं बताया।
सात बहने व आठ भाईओ की अच्छे परिवार में शादी की, सबको पढ़ाया कामयाब बनाया। जुलेढ़ा गाँव का हर व्यक्ति आज भी उनको दिल से याद करता है। मैं धन्य हूँ मैंने ऐसे परिवार में जन्म लिया। पुण्य आत्मा को कोटि कोटि नमन।