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महफ़िल ए बारादरी के रंगोत्सव में सिर चढ़ कर बोला गीत व ग़ज़लों का जादू

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बारादरी में ने प्रतिमानों का गढ़ा जाना सुखद संकेत है : डॉ. मधु चतुर्वेदी

डॉ. अमिता दुबे की पुस्तक ‘सृजन को नमन’ का हुआ लोकार्पण

यूपी – गाजियाबाद बारादरी के मंच पर काव्य के नए प्रतिमानों का गढ़ा जाना हमें भविष्य के प्रति आश्वस्त करता है। महफिल ए बारादरी के रंगोत्सव को संबोधित करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष कवयित्री डॉ. मधु चतुर्वेदी ने कहा कि अदब की यह महफिल दिनों दिन बुलंदी की और बढ़ रही है। उन्होंने अपने गीत, शेर और दोहों से भरपूर सराहना बटोरी। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे ने रचनापाठ के अलावा सुप्रसिद्ध कथाकार से. रा. यात्री का स्मरण किया। इस अवसर पर डॉ. दुबे की पुस्तक ‘सृजन को नमन’ का लोकार्पण भी किया गया।
नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. मधु ने अपने शेरों ‘मेरे आंगन में पड़ा है एक टुकड़ा धूप का, मुझको सूरज से बड़ा है एक टुकड़ा धूप का। जेहन की दीवार पर सब अक्स उजले से लगे, आईना बनाकर चढ़ा है एक टुकड़ा धूप का’ पर भरपूर सराहना बटोरी। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. अमिता दुबे ने कहा कि लेखन एक साधन है और इस साधना में लीन होने का अवसर महफिल ए बारादरी जैसे कार्यक्रम प्रदान करते हैं। संस्था के अध्यक्ष गोविन्द गुलशन ने कहा ‘जो बशर पैकर ए किरदार नहीं हो सकता, वो कभी साहिब ए दस्तार नहीं हो सकता। अक्स भी टूटे हुए आएं नज़र मुमकिन है, आईना टूट के बेकार नहीं हो सकता।’ संस्था की संस्थापिका डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने कहा ‘आप अपनी मिसाल के रंग दे, चाहतों में कमाल के रंग दे। ख़ूब तूने रंगा है हाथों से, आज तो दिल निकाल के रंग दे।
सुप्रसिद्ध शायर सुरेंद्र सिंघल ने फ़रमाया ‘साफ बतला दे मुझे हिले हवाले मत दे, तुझको मिलना ही नहीं है तो साफ बतला दे। बाढ़ में डूब जाएगी यह दुनिया तू बचा ले इसको, भींच ले कस के मुझ को आंसू बहाने मत दे।’ योगेंद्र दत्त शर्मा ने कहा ‘कहा हवा से पेड़ ने कर फागुन को याद, हम करते थे कभी आंखों से संवाद।’ सुप्रसिद्ध शायर मासूम ग़ाज़ियाबादी ने फ़रमाया ‘पूछ इक दिन पहनकर उतरे हुए हारों से, क्या कभी मिल पाए अपने असली हक़दारों से आप।’ ईश्वर सिंह तेवतिया ने एकाकी पिता की तकलीफ़ ‘मेरे घर में मेरे संग में, मेरी तनहाई रहती है, या फिर जो अपनों ने दी है, बस वो रुसवाई रहती है, जीवन भर की त्याग तपस्या, के प्रतिफल को भोग रहा हूं, क्या खोया है क्या पाया है, घटा रहा हूं जोड़ रहा हूं’ इन शब्दों में व्यक्त की। इसी क्रम में शायर असलम राशिद ने फ़रमाया ‘मगर कुछ शाद चेहरों पर, बहुत आबाद चेहरों पर, तरो ताज़ा गुलाबों से, बहुत हस्सास चेहरों पर, ज़रूरतमंद आंखों के, बहुत जायज़ तक़ाज़ों से, बहुत ख़ामोश होंठों के बहुत तीखे सवालों से, मुक़र्रर वक़्त से पहले, बुढ़ापा आ ही जाता है।’ नेहा वैद ने समाज में व्याप्त संवादहीनता को इस तरह व्यक्त किया ‘सूचनाएं ही बचीं संबंध में, बात करने के विषय खोते रहे।’ जगदीश पंकज ने कहा ‘जब कोई खिलती किरण मिलती नहीं हो, तब चलो अपनी व्यथा ही गुनगुनाए।’ इसके अलावा डॉ. तारा गुप्ता, मनु लक्ष्मी मिश्रा, वागीश शर्मा, सोनम यादव, सुरेंद्र शर्मा, अनिमेष शर्मा, सुभाष अखिल, अंजु जैन, विपिन जैन, तूलिका सेठ, संदीप शजर, इंद्रजीत सुकुमार, दिनेश श्रीवास्तव, प्रतीक्षा सक्सेना, देवेन्द्र देव, कीर्ति रतन, विनय विक्रम सिंह, आलोक बेजान, मंजू कौशिक, प्रेम सागर प्रेम, गीता गंगोत्री, आलोक शुक्ला, मीना पांडेय, कर्नल प्रवीण शंकर त्रिपाठी, मृत्युंजय साधक, अंजु साधक, आशीष मित्तल व गीता रस्तौगी की रचनाएं भी सराही गईं।‌ कार्यक्रम का सफल संचालन दीपाली जैन ‘ज़िया’ ने किया।
इस अवसर पर सुभाष चंदर, आलोक यात्री, अतुल जैन, उर्वशी अग्रवाल, सिमरन, सुभाष अरोड़ा, सुखबीर जैन, अनिल शर्मा, सुभाष यादव, ओंकार सिंह, पंडित सत्यनारायण शर्मा, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, राजेश कुमार, राकेश कुमार शर्मा, राष्ट्रवर्धन अरोड़ा, शिवकुमार गुप्ता, वीरेंद्र सिंह राठौड़, गुड्डी, अंजू बेलवार, शिक्षा, मीना पाठक, कैलाश, आनंद कुमार, प्रताप सिंह, भूमिका अखिल, वीरपाल सिंह, डी. डी. पचौरी, संजय कुमार, महकर सिंह, दीपा गर्ग, प्रियंका प्रकाश, रितेश कुमार व टेकचंद सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।