Screenshot_20221103-203604_YouTube
IMG-20230215-WA0382
a12
IMG-20230329-WA0101
IMG-20241030-WA0053.jpg
PlayPause
previous arrow
next arrow

निरंकार-प्रभु को जानकर, इसे मन की गहराइयों में बसाते जायें : सुदीक्षा महाराज

Share on facebook
Share on whatsapp
Share on twitter
Share on google
Share on linkedin

यूपी – गाजियाबाद निरंकार प्रभु परमात्मा, जो कण-कण में बसा है, बेरंगा है, इसको जानकर, इसी के एहसास में हर पल रहते हुए जीवन जीना सम्भव है। जितना जितना निरंकार प्रभु को अपने मन की गहराइयों में बसाते जायेंगे, उतना ही हमारे मनों से अहंकार सहित अन्य दुर्गुण भी समाप्त होते जायेंगे और फिर मन में प्रेम, सुकून, समदृष्टि व अपनत्त्व जैसे मानवीय गुणों का समावेश होता जायेगा, जिससे वाकई में हमारा जीवन एक मुकम्मल जीवन बन सकता है। उक्त उदगार सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने लोनी स्थित डी पी एस स्कूल के विशाल प्रांगण में आयोजित निरंकारी संत समागम में उपस्थित विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।

26 नवंबर को कार्यक्रम में लोनी के भक्तों एवं स्थानीय गणमान्य सज्जनों के अतिरिक्त दिल्ली-एनसीआर सहित आसपास के जिलों मेरठ, बागपत, शामली आदि स्थानों से जहां श्रद्धालुगण शामिल हुए पूरे उत्साह से सम्मलित हुए। स्कूल की अध्यक्ष एवं प्रधानाचार्या सहित स्कूल प्रबंधन के वरिष्ठ सदस्यों ने विशेष रूप से सम्मलित होकर जहां सत्गुरु का भावपूर्ण अभिनंदन किया, वहीं स्कूल के बच्चों ने भी गीत से माध्यम से सतगुरु का आशीर्वाद प्राप्त किया।

सतगुरु माता जी ने शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्कूल में विषयानुसार शिक्षा ग्रहण करते हैं, साथ ही उनके सुंदर और सर्वांगीण विकास हेतु उनके अंदर अच्छे संस्कार, अच्छी तहजीब के साथ-साथ एक बेहतर मनुष्य बनने के लिए उन्हें बचपन से ही आध्यात्मिक शिक्षा भी ग्रहण करना जरूरी है। आध्यात्मिकता के द्वारा ही उनमें मानवीय गुणों का संचार संभव है। हालांकि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, ताउम्र एक छात्र के रूप में रहकर सीखा जा सकता है। परंतु साथ ही यह भी सीखना चाहिए कि क्या हमारे हित के लिए है और क्या नुकसान के लिए। ऐसे में ब्रह्मज्ञान हमें सही दिशा प्रदान करता है। हमें सदैव खुद को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। सतगुरु माता जी ने एक उदाहरण से समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार किसी दलदल में फंसा हुआ इंसान अगर अपना ही हाथ आगे न बढ़ाए तो वहां मौजूद सैकड़ों हाथ भी उसे दलदल से बाहर निकाल नहीं सकते। खुद का एक प्रयास, एक पहल ही जरूरी है।

कार्यक्रम के समापन सत्र में स्थानीय संयोजक उदयराज सिंह ने सत्गुरु माता जी एवं राजपिता जी के दिव्य आगमन हेतु स्वागत एवं समागम की सफल समपन्नता हेतु शुकराना किया। साथ ही स्थानीय सरकारी और गैर सरकारी निकायों द्वारा समागम में प्राप्त सहयोग हेतु सभी का आभार प्रकट किया।