पंडित शिवकुमार शर्मा आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य :- इस वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अमावस्या तक 16 दिन पितृपक्ष रहेगा।
पितृ पक्ष की तिथियां इस प्रकार है।
10 सितंबर पूर्णिमा का श्राद्ध
11 सितंबर प्रतिपदा का श्राद्ध
12 सितंबर द्वितीया का श्राद्ध
13सितंबर तृतीया का श्राद्ध
14 सितबर चतुर्थी का श्राद्ध
15 सितंबर पंचमी का श्राद्ध
16 सितंबर षष्ठी का श्राद्ध
17 सितंबर सप्तमी का श्राद्ध
18 सितंबर अष्टमी का श्राद्ध
19 सितंबर नवमी का श्राद्ध
20 सितंबर दसमी का श्राद्ध
21 सितंबर एकादशी का श्राद्ध
22 सितंबर द्वादशी का श्राद्ध
23 सितंबर त्रयोदशी का श्राद्ध
24 सितंबर चतुर्दशी का श्राद्ध
25 सितंबर सर्वपितृ अमावस्या
*श्राद्ध करने की जनसाधारण के लिए सामान्य विधि*
अपने परिवार के तीन पीढ़ियों के पूर्वजों के निमित्त उनकी वार्षिक तिथि पर श्राद्ध किया जाता है।
सद्गृहस्थी को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।जिससे हमें अपने पूर्वजों की कृपा प्राप्त हो सके।
सबसे पहले प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि करके ईश्वर भजन के पश्चात अपने पूर्वजों का स्मरण करें व प्रणाम करे और
उनके गुणों को याद करें।
अपनी सामर्थ्य के किसी विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित कर भोजन कराएं और उन्हीं से पूर्वजों के लिए तर्पण व श्राद्ध करें। सबसे पहले संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में जल, पुष्प, और तिल अवश्य रखनी चाहिए।
ॐ तत्सत्,अद्य ————-गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें) ——————- नामाऽहम् (नाम बोलें)
आश्विन मासे कृष्ण पक्षे——– ———-तिथौ—————वासरे
स्व पित्रे (पिता) /पितामहाय (दादा) मात्रे (माता) मातामह्यै (दादी)
निमित्तम् तस्य श्राद्धतिथौ यथेष्ठं , सामर्थ्यं श्रद्धानुसारं तर्पणं/ श्राद्ध/ ब्राह्मण भोजनं च करिष्ये ।
इस संकल्प को हिंदी में भी बोल सकते हैं।
आज—— गोत्र में उत्पन्न — मैं आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की—- तिथि को अपने पिता/ दादा/ माता/ दादी के निमित्त उनकी श्राद्ध तिथि पर इच्छा ,सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार तर्पण ,श्राद्ध और ब्राहमण भोजन कराउंगा।
उसके पश्चात तर्पण हेतु किसी बड़े बर्तन अथवा परात में निम्नलिखित वस्तुएं डालें।
शुद्ध जल, गंगाजल, दूध, दही और शहद, काले तिल व कुछ पुष्प डालें।
इस अवसर पर पितृतर्पण के साथ-साथ देव तर्पण और ऋषि तर्पण भी किया जाता है।
सबसे पहले देव तर्पण करते हैं।
सीधे हाथ के अंगूठे के नीचे कुछ दुर्वांकुर लेंगे बाहर की ओर को उनके पत्ते रखेंगे।( इसे देव मुद्रा कहते हैं)
ओम् भूर्भुव: स्व:ब्रह्माविष्णुरूद्रेभ्य; तृपयामि।
ऐसा बोलकर अंजुलि में कनिष्ठा उंगली की ओर से जल भरेंगे और जहां पर हमने दूब घास अंगूठे की नीचे दबा रखी है। उस और हाथ को घुमाकर बाहर निकाल देंगे।
इस मंत्र से सात बार बोल कर देवों के लिए तर्पण करें।
इसके पश्चात ऋषि तर्पण के लिए देव तर्पण की ही तरह 7 बार सप्तर्षियों के निमित्त तर्पण करेंगे।
ओम् भूर्भुव: स्व: सप्तर्षिभ्य; तर्पयामि।
इसके पश्चात उस दुर्वा घास को अंगूठे के नीचे से निकालकर पांच उंगलियों को एक साथ मिलाएंगे। इसे पितृ मुद्रा कहते हैं।
उसमें दुर्वा घास दबा लेंगे।
अपने पितृ देवता के लिए सात बार तर्पण करेंगे ।ओम भूर्भुव: स्व: पितरेभ्य: तृपयामि।
ऐसे मंत्र को बोलकर कनिष्ठा उंगली के नीचे की ओर से जल भरेंगे और हाथ को सीधा करके उंगलियों के बीच में से परात में छोड़ देंगे।
पिता के लिए :
ओम भूर्भुव: स्व: पित्रेभ्य: तृपयामि।
माता के लिए :
ओम भूर्भुव: स्व: मात्रेभ्य:तर्पयामि।
दादा के लिए :
ओम् भूर्भुवः स्व: पितामहेभ्य:तर्पयामि।
दादी जी के लिए:
ओम् भूर्भुव: स्व: मातामहीभ्य:तर्पयामि।
परदादा के लिए प्रपितामहेभ्य: बोलेंगे।
वैसे तो यदि विस्तार में जाएंगे तो अपने पिता के कुल की 5 या 7 पीढ़ियों के उच्चारण करके तर्पण करते हैं और अपनी नाना पक्ष की भी पांच पीढ़ियों का उच्चारण करके तर्पण करना होता है। जो किसी विद्वान आचार्य के द्वारा ही कराया जा सकता है ।
जनसाधारण के लिए उपरोक्त विधि ही सबसे उपयुक्त है।।
तर्पण के पश्चात अपने पूर्वज की रूचि का भोजन बनाकर थाली में रखें और 6 पूडी अथवा पराठे या रोटी रखें।
उनके 6 भाग इस प्रकार करें। प्रत्येक पूडी पर जो भी वस्तुएं बनी है, सबको थोड़ा-थोड़ा रखें और उसके पश्चात उनके ऊपर से दो बार जल फेरें।
एक भाग गौ बलि
दूसरा भाग काक (कौवे हेतु) बलि तीसरा भाग स्वान (कुत्ते हेतु) बलि चौथा भाग पिपिलिका बलि (चींटियों हेतु)
पांचवा भाग विश्वे देवा (सभी देवताओं के लिए)
और छठा भाग चांडाल बलि
कौवे के निमित्त एक भाग निकालकर घर की छत पर रख दें अथवा खुले मैदान में रख दें। बाकी सभी पूडियों को गाय को खिला दें।
तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं ब्राह्मण न मिले तो किसी धर्म प्रचारक या योग्य पात्र को खाना खिलाएं।
उसके पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा आदि देकर विदा करें। उनके पैर छुए उसके पश्चात स्वयं भी भोजन करें।