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वासन्तिक नवरात्रों में बन रहे हैं कई शुभ योग, जानिए घटस्थापना के शुभ मुहूर्त

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आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य पंडित शिवकुमार शर्मा :-

भारतीय नव वर्ष संवत 2079, 2 अप्रैल से आरंभ होगा। उसी दिन वासंतिक नवरात्र भी आरंभ होंगे।
2 अप्रैल को शनिवार को रेवती नक्षत्र है इससे सर्वार्थ सिद्धि योग और धाता योग बन रहा है।
नवरात्रि और नव संवत का आरंभ  बड़े शुभ योग में हो रहा है।
शनिवार को वर्ष आरंभ होने से  संवत 2079के  राजा शनिदेव होंगे। और शनिवार से नवरात्रि आरंभ होने कारण दुर्गा मां का वाहन घोड़ा होगा। घोड़े पर बैठकर मां दुर्गा अपने भक्तों के यहां आएंगी।नवरात्रि में माता के वाहन का भी बड़ा महत्व रहा है। इस विषय देवीभागवत पुराण में एक श्लोक में बताया गया है कि –
*शशि सूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च डोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता।*
अर्थात रविवार और सोमवार को आरंभ होने वाले नवरात्रों में दुर्गा माता हाथी पर सवार होकर आती है। शनिवार व मंगलवार को घोड़े पर सवार होकर आती हैं बृहस्पति वार और शुक्रवार को झूले पर सवार होकर आती हैं। बुधवार को आरंभ होने वाले नवरात्रों में नाव पर सवार होकर आती है।
इस वर्ष शनिवार को नवरात्र आरंभ हो रहे हैं इसलिए दुर्गा माता घोड़े पर सवार होकर आएंगी घोड़े पर सवार होने का तात्पर्य है कि राज्य अथवा देशों में छत्र भंग हो जाएंगे । अर्थात राज्यों में  अथवा देशों में शासन परिवर्तन होने की संभावनाएं हैं।
राजा एक दूसरे से युद्धोन्माद  में लगे रहेंगे। षड्यंत्रकारी नीतियां चलती रहेंगी
नवरात्र काल हमारे वर्ष में दो बार होते हैं जो मौसम की संधियों में मनाए जाते हैं।
सर्दी और गर्मी के संधिकाल में वासंती नवरात्र और गर्मी और सर्दियों के मध्य में शारदीय नवरात्र होते हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार हमारी पूरी संस्कृति प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर बनाई गई है। हमारे भारतीय त्यौहार आदि भी इसी के अनुसार निर्धारित किए गये हैं।  भारतीय नव वर्ष के दिन मौसम सुहाना हो जाता है सर्दी और गर्मी सम होती है। वसंत ऋतु  और चारों तरफ फसल पकने की सुगंध फैलती है ।मानो प्रकृति अपने सोलह श्रृंगार कर जन-जन को लुभा रही हो।
*घटस्थापना के मुहूर्त*
घटस्थापना  के लिए सबसे अच्छे समय इस प्रकार है:
प्रातः 6:46 से 8:22 बजे तक मेष लग्न शुभ  रहेगा।
इसके पश्चात 9:00 बजे से 10:30 बजे तक राहुकाल है। इस अवधि में कलश स्थापना नहीं करनी चाहिए। इसके पश्चात 10:30 बजे से 12:31 बजे तक मिथुन लग्न बहुत उत्तम है। इस लग्न की अवधि में 11:36 से 12:24 तक का अभिजीत मुहूर्त  सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है
मध्यान्ह 2:52 से 5:09 तक स्थिर लग्न सिंह लग्न है जो कलश स्थापना के लिए उत्तम मुहूर्त माना जाता है।*कलश स्थापना व जौ रोपण की विधि*
नवरात्रि के आरंभ के दिन घट स्थापना का मुहूर्त  समय निश्चित करके उससे पूर्व से ही तैयारियां करलें। पूजन में प्रयोग होने वाली सामग्री,रोली,चावल ,कलावा ,पुष्पमाला ,पान, जौ ,दीपक, मिट्टी अथवा तांबे का कलश  लौंग  ,घी आदि को यथा विधि तैयार करलें।
स्नान करके गंगाजल से अपने कलश स्थापना स्थल को स्वच्छ करें ।एक चौकी पर दुर्गा मां की मूर्ति रखें।अथवा जिनके घर में मंदिर बने हुए हैं वह मंदिर के पास उपरोक्त व्यवस्था करें ।अपने बाएं हाथ की ओर कलश की स्थापना करें और दाहिने हाथ की ओर दीपक जलाएं। कुछ साधक नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाते हैं ।इसका नियम यह है कि जब तक घर में अखंड ज्योत जलती है कोई ना कोई  सदस्य घर में अवश्य रहना चाहिए ।घर को खाली नहीं छोड़ सकते। 9 दिन तक प्रयत्न पूर्वक  ज्योत को बुझने ना दें । बीच में जोत बुझना अच्छा नहीं माना जाता है।
किसी  मिट्टी के बर्तन में मिट्टी अथवा रेत भरकर उसमें थोड़ा पानी डालें। 50 ग्राम या 100 ग्राम शुद्ध जौ लेकर यह देख ले कि उसमें घुन आदि तो नहीं लगी है। थोड़ी देर गंगाजल में डुबोएं और उसे  मिट्टी के पात्र में अथवा तसलें की  मिट्टी में बिखेर दें। हल्का हल्का पानी लगा दें। उसके पश्चात कलश में गंगा जल व जल भरे उसमें बताशा लौंग इलायची ,सुपारी और चावल डाल दें। कलश के ऊपर कलावा लपेटे 5 यह 7 आम के पत्ते लगा कर के नारियल में चुन्नी लपेट करके कलश के मुंह पर रख दे । उसके पश्चात दीप जलाएं और दीप जाने के बाद जैसी भी आपकी इच्छा हो दुर्गा मां का आह्वान कर पंचोपचार व षोडशोपचार से मां की पूजा करें। और इच्छा अनुसार  दुर्गा सप्तशती का पाठ करें ।अथवा दुर्गा कवच, अर्गला स्तोत्र ,कीलक और 13 अध्याय का पाठ कर सकते हैं। यदि आपको यह नहीं करना तो केवल नवार्ण मंत्र का जाप करें और दुर्गा मां की कहानी पढ़ें।तांत्रिक देवी सूक्तम और आरती अवश्य करें।
इस प्रकार से कलश स्थापना करने दुर्गा मां का आवाहन , व्रत, पूजा करने से साधक की इच्छाएं पूर्ण होती हैं।