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सपा जिला कार्यालय पर मनाई गई छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र की जयंती

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यूपी – गाजियाबाद सपा जिला कार्यालय पर पार्टी कार्यकर्ताओं ने समाजवादी चिंतक छोटे लोहिया स्व. जनेश्वर मिश्र की जयंती उनके  चित्र पर पुष्प अर्पित उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं मनाई।

 सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव हों या सीएम अखिलेश यादव जब भी बात समाजवाद की होती है तो दोनों छोटे लोहिया यानि जनेश्वर मिश्र का जिक्र जरूर करते हैं। हालांकि‍ बहुत कम लोगों को पता है कि‍ इस समाजवादी नेता का नाम छोटे लोहिया कैसे पड़ा, दरअसल जनेश्वर मिश्र राम मनोहर लोहिया के निजी सचिव थे और  समाजवाद के प्रणेता कहे जाने वाले लोहिया के विचारों का उन पर खासा प्रभाव पड़ा।

यूपी के खाद्य मंत्री नारद राय बताते हैं कि जनेश्वर मिश्र ने राम मनोहर लोहिया के साथ बहुत दिनों तक काम किया इस दौरान उन्होंने राम मनोहर लोहिया के विचारों और कार्यशैली को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था। इसके बाद जब लोहिया का देहांत हुआ तो इलाहाबाद में एक बड़ी सभा हुई। इसमें समाजवादी नेता छुन्नु ने कहा कि जनेश्वर मिश्र के अंदर राम मनोहर लोहिया के सारे गुण हैं और वे एक तरह से छोटे लोहिया हैं। इसके बाद उनका नाम छोटे लोहिया पड़ गया और फिर लोग उन्हें इसी नाम से ही पुकारने लगे।

जनेश्वर मिश्र का जन्म 5 अगस्त 1933 को बलिया जिले के शुभ नाथहि गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम रंजीत मिश्र और माता का नाम बासमती था। लोकनायक जय प्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया का गहरा प्रभाव विद्यार्थी जीवन में जनेश्वर मिश्र पर पड़ा। जय प्रकाश नारायण के सर्वोदय आंदोलन में चले जाने के बाद जब लोहिया ने समाजवादी आंदोलन और संघर्ष की कमान संभाली तब से जनेश्वर मिश्र पूरी तरह से डॉ. लोहिया के ही साथ हो गए।

इसके बाद जनेश्वर मिश्र ने तमाम युवाओं को समाजवादी संघर्ष और विचार से जोड़ कर राजनीतिक सक्रियता प्रदान की। वहीं डॉ. लोहिया के विचारों के लिए संघर्ष करने वाले लोकबंधु राज नारायण का भी जनेश्वर मिश्र पर काफी प्रभाव पड़ा। बताया जाता है कि‍ उन्होंने अपने राजनीतिक कॅरियर को दाओबा इंटर कॉलेज से शुरू किया। इसके बाद उन्होंने समाजवादी युवजन सभा को ज्वाइन किया और फिर वे राममनोहर लोहिया के संपर्क में आए।

जनेश्वर मिश्र पहली बार 1969 में इलाहाबाद की फूलपुर से निर्वाचित होकर सांसद बने। उन्होंने तब इंदिरा गांधी के मंत्रि‍मंडल में पेट्रोलियम मंत्री केडी मालवीय को हराया था। वे पहले ऐसे गैर कांग्रेसी सासंद थे जो फूलपुर लोकसभा सीट से चुने गए थे। वे चार बार लोकसभा के लिए चुने गए जबकि राज्यसभा के लिए 1996, 2000 और 2006 में चुने गए।