
हर साल सर्दियों में दिल्ली–एनसीआर एक बार फिर खतरनाक प्रदूषण की गिरफ्त में आ जाता है। हवा में घुला स्मॉग, तेज धुंध, कम होती दृश्यता और साँस लेने में कठिनाई यहाँ की सामान्य सर्दियों की पहचान बन चुके हैं। भौगोलिक संरचना, जनसंख्या घनत्व, भारी वाहन-भार, औद्योगिक इकाइयाँ और ठंडी हवा का स्थिर होना इस क्षेत्र को देश के सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल करता है।
सर्दियों में प्रदूषण क्यों बढ़ता है
सर्दियों में तापमान-इन्वर्शन के कारण प्रदूषक ऊपर न जाकर नीचे ही फँसे रहते हैं। हवा की गति कम होने से कण फैल नहीं पाते और कोहरे के साथ मिलकर जहरीला स्मॉग बनता है। इसके अलावा पराली जलाने, वाहनों के धुएँ, औद्योगिक उत्सर्जन और निर्माण-धूल से हवा और प्रदूषित होती रहती है।
वर्तमान स्थिति
अक्टूबर से जनवरी तक कई दिन दिल्ली–एनसीआर का एक्यूआई ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी (300–500) में पहुँच जाता है। इससे आँख, नाक, गला, फेफड़े और हृदय पर गंभीर असर पड़ता है। बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा मरीजों के लिए यह स्थिति अत्यंत खतरनाक बन जाती है।
प्रदूषण के प्रमुख स्रोत
पराली जलाना दिल्ली के कुल प्रदूषण में 25–40% तक योगदान देता है। परिवहन, औद्योगिक इकाइयाँ, निर्माण-स्थलों की धूल और कचरा जलाना अन्य बड़े कारण हैं।
सरकारी प्रयास
ग्रेप (GRAP), सीएक्यूएम (CAQM), बीएस-6 ईंधन, ई-वाहन प्रोत्साहन और पराली प्रबंधन योजनाओं के माध्यम से प्रदूषण कम करने की पहल की जा रही है। हालांकि इन प्रयासों के अधिक प्रभावी परिणाम तभी मिलेंगे जब सभी एजेंसियाँ और राज्य मिलकर काम करें।
बचाव के उपाय
व्यक्तिगत स्तर पर एन95/एन99 मास्क पहनना, सुबह-शाम बाहर न निकलना, एयर-प्यूरिफायर, इनडोर पौधे, संतुलित आहार और पर्याप्त पानी उपयोगी है। सामुदायिक स्तर पर धूल नियंत्रण, कचरा न जलाना और सोसाइटी में हरियाली बढ़ाना आवश्यक है। दीर्घकाल में सार्वजनिक परिवहन का विस्तार, पराली का वैज्ञानिक प्रबंधन, औद्योगिक निगरानी और ग्रीन-कोरिडोर जरूरी हैं।
दिल्ली–एनसीआर का प्रदूषण केवल मौसम की समस्या नहीं, बल्कि एक सामूहिक चुनौती है। इसके समाधान के लिए सरकार, उद्योग, किसान और नागरिक—सभी को मिलकर इसे लगातार लड़ने वाली लड़ाई मानना होगा।




