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साहिब कबीर जयन्ती पर समाजसेवी सिकंदर यादव ने विशाल भंडारे का किया आयोजन 

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यूपी – गाजियाबाद सदगुरु सेवा समिति एवं युवा विकास प्रयास (युविप) समिति के संस्थापक  वरिष्ठ समाजसेवी, कबीरपंथी सिकंदर यादव ने अपने निवास गाजियाबाद के थर्ड बी 52 नेहरू नगर पर ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि यानी 14 जून 2022 मंगलवार को साहिब संत कबीर जी का 624वां प्राक्ट्य दिवस मनाया और 11वां विशाल वार्षिक भंडारे का आयोजन हुआ जो अनवरत देर शाम तक चलता रहा।


मंगलवार की सुबह साहिब कबीर की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ा, संत श्री हितकारी महाराज द्वारा सत्संग का आयोजन किया गया जिन्होंने साहिब के विचारों पर प्रकाश डाला। बीजक पाठ के बाद भंडारा श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। इसमें गाजियाबाद सहित आसपास के कई इलाकों के गणमान्य कबीरपंथी अनुयायियों, पत्रकार एवं नेताओं ने हिस्सा लेकर प्रसाद ग्रहण किया।

साहिब कबीर जी के जन्म के विषय में कई मतभेद मिलते हैं। साहिब कबीर जी ने अपने दोहों से लोगों के मन में पैदा हुई भ्रांतियों को दूर किया और धर्म का चोला ओढ़ लोगों में द्वेष पैदा करने वालों पर प्रहार किया। कबीर जी को मानने वाले लोग हर धर्म से हैं। कबीर दास जी के कई दोहे हमें सफलता के करीब पहुंचाने का काम करते हैं।
स्वर्ग नर्क को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों को अपने दर्शन और आचरण से दूर किया।
साहिब कबीर सभी धर्मों का आदर करते हुए एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे।
कबीर दास जी ने स्वर्ग व नर्क को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को तोड़ा।

कबीरपंथी सिकंदर यादव ने साहिब कबीर के बारे में बताया साहिब भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति तथा समाज सुधार के महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। उनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका दर्शन भक्ति के आडंबरों से अलग मानवीयता पर आधारित था। सिखों के सर्वोच्च ग्रंथ गुरु ग्रन्थ साहिब में भी उनकी वाणी सम्मिलित है। इसमें कबीर जी के 227 शब्द मौजूद हैं। श्री यादव ने बताया साहिब कबीर जी को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण वे समादृत हुए। वे मानव धर्म में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी भाषा सरल व सुबोध रखी, ताकि जन-जन तक वह अपने दर्शन का प्रभाव डाल सकें। कबीर दास जी कर्मप्रधान समाज के पैरोकार थे। लोक कल्याण हेतु ही उनका जीवन समर्पित था।
कबीरपंथी सिकंदर यादव कहते है कि साहिब कबीर ज्ञान को ही भक्ति का अवलंब मानते थे। उन्होंने कहा कि अहंकार को छोडऩे से ही ईश्वर का सान्निध्य मिलता है। एक वाणी में वह कहते हैैं कि ज्ञान के प्रकाश में ही अहं का अंधकार दूर होता है और तब अपना अस्तित्व तथा सृष्टि में सबकुछ ईश्वरमय दिखाई देता है :
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देखा माहिं।।अंत में श्री यादव जी कहते है कि अधिकतर अब तक जान ही नहीं पाए हैं कि कबीर को पढ़ने से ज्‍यादा समझने की आवश्‍यकता है। उन्‍हें परम पुरूष बना कर ऊंचे आसान पर बैठा दिया जाता है। ऐसे आसन पर जहां विराजित व्‍यक्ति की पूजा की जाती है, उसके विचारों का पालन करने की श्रद्धा नहीं होती। अंधभक्ति का यह आवरण हटा कर देखेंगे तो साहिब कबीर के विचार पथ पर चल पाएंगे।
आज विश्व जिस संकट के दरवाजे पर खड़ा है, ऐसे में इनकी कही हुई वाणी और प्रासंगिक हो जाती है। किसी भी बड़े बुजुर्ग, महापुरूषों की जयंती को मनाने से उनके जीवन से प्रेरणा मिलती है, जो नई पीढ़ी के लोग हैं, उन्हें भी उन महापुरूषों के बारे में विस्तार से जानने का अवसर मिलता है। 
इस अवसर पर कबीरपंथी सिकंदर यादव की टीम कुणाल यादव, रवि यादव, प्रियंका यादव, रतन सिंह यादव, डॉ राजवीर सिंह, गुड्डू ,नीरज वर्मा, सनी सैनी, आकाश चौधरी, आकाश फोगाट, राजपाल ने भंडारे में आए हुए अतिथियों को सप्रेम प्रसाद ग्रहण कराया