सिकंदर यादव वरिष्ठ समाजसेवी-
हाल ही में ट्रंप की भारत पर टैरिफ लगाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री ने चीन की यात्रा की, जोकि भारतीय प्रधानमंत्री की 7 वर्षों में पहली चीनी यात्रा थी, विदेश नीति के जानकार इस यात्रा को, ट्रंप को जवाब के रूप में दिखाया जा रहा है, क्योंकि शंघाई शिखर वार्ता में रूस, कोरिया भी शामिल थे, इसे ट्रंप या अमेरिका के खिलाफ एक नया मोर्चा बताया जा रहा है, और बदलते वर्ड ऑर्डर के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जहां तक भारत का विषय है भारत और चीन के संबंध गलवान घटना के बाद तनावपूर्ण रहे हैं, सीमा पर अभी भी तनाव बना हुआ है और ऐसी भी खबरें आ रही है कि चीन ने बफर जोन में अपनी स्थिति मजबूत कर रखी है।
1962 के बाद ही चीन की भारत के प्रति निति ठीक नहीं रही है, तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन की नजर लद्दाख व अरुणाचल प्रदेश पर गड़ी हुई है, हाल ही में भारत-पाकिस्तान युद्ध में ये निकलकर आया कि चीन ने पाकिस्तान को खुफिया जानकारी व हथियार दिए, ऑपरेशन सिंदूर के बीच बड़े रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए पाकिस्तान से बड़ा खतरा चीन है, खुद चीनी ये मानता है कि भारत का बड़ा बाजार व उसकी अर्थव्यवस्था चीन के लिए चुनौती है,
वो कभी भी भारत का हितेषी नहीं हो सकता। उसका भारत के प्रति लगाव सिर्फ अपने उत्पादों को भारतीय बाजार में बेचना मात्र है।
भारत को सावधान रहना होगा क्योंकि चीन का इतिहास हमेशा साम्राज्यवादी व विस्तारवादी रहा है, अतः भारत को अपने विदेश नीति में हमेशा ध्यान रखना होगा कि चीन को व्यापार में एक तरफा लाभ न हो, आज भारत का कुटीर उद्योग व लघ उद्योग चीन के सस्ते सामान की वजह से कर चरमरा गया है, हाल ये है कि भारत का खिलौना उद्योग चीन के सस्ते उत्पादों के कारण समाप्त होने की कगार पर है, भारत के किसी भी त्यौहार पर होली, दिवाली, रक्षाबंधन आदि पर चीन के समान से भारतीय बाजार भरे रहते हैं, लाइट से लेकर फर्नीचर तक आज चीन से आ रहा है, मोबाइल इंडस्ट्री पर तो पहले ही चीन का कब्जा है, हमारे नीति निर्धारकों को समझना होगा कि हम अपने ऐसे पड़ोसी को तो मजबूत नहीं कर रहे जो एक दिन हमें धोखा देगा।